सत्य को जानना-2

सत्य को जानना-2

 

तुम सत्य को जानोगे और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा. (युहन्ना 8:32)

इस वाक्य में तीन मुख्य शब्द हैं- सत्य, जानना, स्वतंत्रता. तीनों अद्वितीय हैं. तीनों गहरा अर्थ रखते हैं. तीनों का अस्तित्व हमारे आयाम (Dimension) से ऊपर हैं. तीनों महत्वपूर्ण हैं. स्वतंत्रता अंतिम पायदान है. जानना -यह एक पेचीदा शब्द है, उलझाऊ और धोखा देने वाला है.इसीलिए तो नहीं जानते हुए भी जानने का भ्रम होने लगता है. जानना इस बात पर निर्भर है कि जिस वस्तु को हम जानने की कोशिश कर रहे हैं वह कैसी है. हमें शून्य से आरम्भ करना चाहिए.

आज हम सत्य पर चर्चा करेंगे. मनुष्य कहाँ विचरण करता है? संसार में. उसको कुछ इन्द्रियां (Senses) दी गयीं हैं, एक मस्तिष्क दिया गया है, बाकि प्राणियों से अधिक समझ दी गयी है. इन्द्रियों, मस्तिष्क तथा समझ की सीमाएं हैं. मनुष्य की आँखों को कुछ रंग दिखाई देते हैं कुछ नहीं. कानों को कुछ आवाजें सुनाई देती हैं कुछ नहीं. कुछ गंध हम जानते हैं कुछ नहीं. विज्ञान आज इस दशा में है कि हमें बता सके कि ऐसे रंग हैं, आवाजें हैं, तरंगें हैं और बहुत कुछ हैं जिनको देखने, सुनने, महसूस करने के लिए हमारी इन्द्रियां सक्षम नहीं हैं. कुछ यंत्र भी बनाये गए हैं जो हमें यह जता सकते हैं. हमारी सीमाओं से परे देखने के लिए हमें विज्ञान का सहारा लेना पड़ता है. विज्ञान ने यह प्रमाणित कर दिया है कि ऐसी भी बातें हैं जिनको हम इस शरीर के द्वारा नहीं जान सकते. फिर भी ऐसी बातें हैं जिनको विज्ञान अभी प्रमाणित नहीं कर सकता. यीशु ने कहा-परमेश्वर आत्मा है1. आत्मा की सच्चाई विज्ञान की सीमा के परे है. बाइबल कहती है कि परमेश्वर ने यीशु मसीह में देखी-अनदेखी वस्तुओं की सृष्टि की है2. ऐसे आयाम हैं जो मनुष्य की सीमाओं से परे हैं. सत्य भी उसी आयाम का है.

इन्द्रियां, मस्तिष्क और समझ एक दुसरे से जुड़े हैं. फिर भी मस्तिष्क ऐसी बातों को समझ पाता है जो इन्द्रियों से परे हैं- तर्क और विश्लेषण के बल पर. तभी तो विज्ञान ने इन्द्रियों से परे की दुनिया को खोज निकाला. पर सिर्फ तर्क और विश्लेषण हमें इन्द्रियातीत संसार (world beyond senses) का ज्ञान नहीं दे सकते. तर्क और विश्लेषण केवल निष्कर्ष देते हैं कि ऐसा है.पर वहां का ज्ञान प्राप्त करने के लिए हमें उस संसार से परस्पर-क्रिया (interaction) करनी पड़ती है, अवलोकन (observation) करना होता है. उसके लिए नए प्रकार के यंत्र चाहिए. इस सुगठित, सुसंचालित संसार को देखकर यह निष्कर्ष तो निकलता है कि कोई परमेश्वर है जिसने इसको बनाया है और वह इससे परे है, परन्तु परस्पर-क्रिया के बिना उस परमेश्वर को जानना असंभव है. इसीलिए आजतक इस संसार में कोई प्रमाण नहीं दे पाया कि परमेश्वर का अस्तित्व है. परन्तु उसके अस्तित्व के लिए प्रमाण की आवश्यकता नहीं. सत्य भी ऐसा ही है. जब बुरा है तो भला भी है, घृणा है तो प्रेम भी है, घमंड है तो नम्रता भी है, असत्य है तो सत्य भी है. जो सत्य हमारी पहुँच के अन्दर हैं उन्हें प्रमाणित किया जा सकता है पर जो हमसे परे हैं उन्हें नहीं. यीशु ने उस सत्य के बारे बातें कीं जो हमारी सीमाओं से परे है.

यदि हम आयामों की बात करें जैसा विज्ञान बताता है, तो समझने में आसानी होगी. आयाम शून्य से आरम्भ होते हैं.
शून्य आयामी वस्तु (Zero dimensional object)- जिसमें न लम्बाई हो, न चौड़ाई हो और न उंचाई. हम सिर्फ एक ही ऐसी वस्तु जानते हैं- बिंदु (point).
एक-आयामी वस्तु (One dimensional object)-जिसमें लम्बाई तो हो पर चौड़ाई तथा उंचाई न हो, जैसे एक सरल रेखा (straight line).
दो-आयामी वस्तुएं (Two dimensional objects)- जिसमें लम्बाई और चौड़ाई तो है परन्तु उंचाई नहीं है. जैसे एक समतल कागज़ पर बनी आकृतियाँ; वृत्त (circle), त्रिकोण (triangle) आदि.
तीन-आयामी वस्तुएं (Three dimensional objects)- जिनमें लम्बाई चौड़ाई, उंचाई तीनों मौजूद हैं. जैसे वे वस्तुएं जिन्हें हम इस्तेमाल करते हैं; गिलास, घर, पेड़ आदि.
विज्ञान के अनुसार तो इस रूप में और भी आयाम हैं. पर हमारा इतना जानना सत्य की प्रकृति (nature) को समझने के लिए काफी है.

हम त्रि-आयामी दुनिया से परिचित हैं. यहीं हमारा उठना-बैठना है, यहीं हमारा काम है. कल्पना कीजिये कोई ऐसा प्राणी है जो द्वि-आयामी दुनिया का है. उसको लम्बाई-चौड़ाई का तो ज्ञान है पर ऊंचाई-गहराई का नहीं. यदि हमें उस व्यक्ति को त्रि-आयामी दुनिया की सच्चाई बतानी हो तो हम क्या करेंगे? उसे बताना हो घर के बारे, पेड़ के बारे, पहाड़ के बारे, नदी के बारे….. तो? हम उसे इस त्रि-आयामी दुनिया में नहीं ला सकते, क्योंकि उसके पास ऊंचाई-गहराई को जानने-समझने के लिए कोई इंद्री या योग्यता नहीं है. हमें उससे जो भी बातें करनी होंगी वह उसी की समझ के अनुसार करनी होंगी- उसकी दुनिया में जाकर. हम शब्दों के द्वारा प्रयास कर सकते हैं. पर वो फिर भी ठीक से नहीं समझ सकता (और न हम उसे समझा सकते हैं.) हम कागज पर तस्वीरें बना कर समझाने का प्रयास कर सकते हैं, पर ध्यान रहे उसके पास हमें जैसी आँखें नहीं हैं जो कागज को ऊपर से देख सके. उसे तो दी गयी तस्वीर को देखने के लिए कागज पर आगे-पीछे, दायें-बाएं टहलना होगा. वह ऊपर नहीं जा सकता. वह द्वि-आयामी है. और यदि उसे किसी उपाय से तस्वीर दिखा भी दी जाये तो वह समझ नहीं सकता कि पेड़ कैसे होते है, पहाड़ कैसे होते है. उसकी समझ अत्यंत सीमित होगी. वह उपलब्ध सत्य को समझने में बिलकुल अक्षम है.

हम त्रि-आयाम को समझते हैं. पर उसके ऊपर के आयामों को नहीं. और विज्ञान जिन आयामों के बारे बात करता है वह सब भौतिक हैं. सत्य तो उसके ऊपर का है-वह आत्मिक आयाम का है. उसको जानने के लिए कोई यंत्र नहीं है. वह हमारी इन्द्रियों से परे है. वहां की बातें हमें समझनी हैं. हमें जानना है. कैसे? शायद कोई शब्दों में समझाने की कोशिश करे. पर शब्द अपर्याप्त होंगे. सत्य को बताया नहीं जा सकता. शायद कोई प्रक्षेपण (projection) से बताने की कोशिश करे, जैसा हमने त्रि-आयामी पेड़ का द्वि-आयामी चित्र बनने की कोशिश की थी. पर यह भी अधूरा ही है-बहुत अधूरा. जो लोग इसको समझे बिना सत्य को जानने और बताने का दावा करते हैं वे उसी व्यक्ति के समान हैं जो द्वि-आयामी है और दिए गए चित्र की व्याख्या कर रहा है, जबकि उसे ऊंचाई और गहराई का कोई ज्ञान ही नहीं है. यह ऐसा है जैसे कोई वर्णांध (colour blind) व्यक्ति रंगों के बारे समझाए, या कोई बहरा संगीत की व्याख्या करे. थोड़ी-बहुत व्याख्या करके वह आत्म-संतुष्ट हो सकता है, पर वह खुद को धोखा दे रहा होगा. ऐसा ज्ञान घमंड उत्पन्न करता है3. यह खोखला ज्ञान है. इसलिए पौलुस ने कहा कि यदि कोई समझे कि मैं कुछ जानता हूँ तो जैसा जानना चाहिए वैसा अबतक नहीं जानता4. सत्य के विषय सच्ची समझ तो यह है कि हमें ऐसे विराट तत्व का पता चला है जिसके बारे हम कुछ नहीं जानते. हम उसके अस्तित्व को जान कर स्तब्ध है. हमारे सारे ज्ञान और सारी उपलब्धियां उसके सामने शून्य के बराबर हैं. इस ज्ञान में घमंड का कोई अस्तित्व ही नहीं रह सकता.

प्रभु यीशु मसीह ने सत्य बताने की कोशिश की. वह दूसरी दुनिया से आये थे- ऊपर से5. ऊपर का अर्थ है अज्ञात से. वह दुनिया जिसके बारे सब अज्ञात है. जहाँ से सब साफ़-साफ़ दिखता है. जहाँ से सब समझा जा सकता है. जैसे त्रि-आयामी व्यक्ति को द्वि-आयामी, एक-आयामी सब बातें समझ में आती हैं. पर वहां से इस दुनिया में आकर वहां की बातों को बताना वैसा ही है जैसे त्रि-आयामी व्यक्ति के लिए द्वि-आयामी लोगों को समझाना; अंधे को रंगों का ज्ञान देना तथा बहरे को संगीत का. इसलिए प्रभु यीशु ने हमारे स्तर पर बातें कीं. उनकी बातों को हम नहीं समझ सकते थे6. फिर भी उसने कई राज खोले, जो पवित्रशास्त्र में दर्ज है. पर उनको वैसे नहीं जाना जा सकता जैसे इस संसार के रहस्यों को समझते है. न कोई ऐसा यंत्र है जो उसे प्रगट कर सके. परन्तु उसने सत्य को जानने का द्वार खोल दिया है.

बाकि अगले अंक में.

1 युहन्ना 4:24
2 कुलुस्सी 1:16
3 1 कुरिन्थ 8:1
4 1 कुरिन्थ 8:2
5 युहन्ना 8:23
6 युहन्ना 16:12